मेरे अंग-संग साहेब-साहिल
त्रिमूर्ति के कल्पवृक्ष में पूर्णतः समाया अनंत ब्रह्मांड है।
इस ब्रह्मांडमें, ॐ अथवा एकांकार एक गहरी सोच तत्वरूपमें महसूस होती है।
इसी तत्वरूपमें, अन्तर्यामी ठैरी हुई शून्यताकी अनुभूति महसूस होती है।
इस शून्यतामें स्वयं खुशी अथवा मर्जीसे पहुंचा हुआ पंछी-मुसाफिर कभी वापस नहीं लौटता।
तत् सत्
शून्यता स्वरूपमें समाए, हरेक सूफी-संत गाए,
मेरा मुझमें कुछभी नही, सबकुछ एकही,
साहेब-साहिल। हम में कोई ना दूजा।
साहेब-साहिल। हम में कोई ना दूजा।
साहेब = परमात्मा
साहिल = सदा खुदके अंग-संग जुड़ा परम प्रिय मित्र.
अंग-संग = In constant companionship with every grain of our being.
मेरे अंग-संग वाहे गुरु।
जिसकी कृपा और दुआसे हम परमसत्य अनुभूति को प्राप्त होते हैं।
अंग-संग = In constant companionship with every grain of our being.
मेरे अंग-संग वाहे गुरु।
जिसकी कृपा और दुआसे हम परमसत्य अनुभूति को प्राप्त होते हैं।
Image - Saahil A. Deo ( L ), Ashwinkumar S. Deo ®
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