Tuesday, March 7, 2017

The Festival oF Holi - होली का त्योहार



The Festival oF Holi - होली का त्योहार



सोमवार, १३ मार्च २०१७ के शुभदिन,  दुनियाँ के सारे भारतीय दिलों में होली का त्योहार मनाने, इंद्रधनुष्य के सारे रंगोंसे सजाया जाएगा।  


वैयक्तिक भाव में, होली याने आत्मबोधिक अथवा खुदकी असली वैश्विक पहचान की सोच और अन्तर्यामी खोज है।  





Image courtesy of  -

Many Faces of Women: Celebrating Women in Sketches: Usha Deo ...




छाया चित्र - भारत में होली त्यौहार का सामुदाईक रूप

सार्वजनिक मनोभाव में, होली वृंदावन के गलियों में,
झनक झनक पायल बाजे और रंग भरी पिचकारियोंकी प्रेम वर्षा।  





आध्यात्मिक मनोभाव में,
यही होली, मन में बसा हुआ कचरा-कुडा अग्नीमें भस्मकर,  
मनको साफ-सुतरा करनेका मंगल अवसर होता है।    
साफ-सुतरा मन, फिर वृंदावन बन जाता है,
जिसमें खुशियों के अनेक रंग उधेले जाते हैं।  
इसी दृष्टिकोण से,
श्री कृष्ण के साथ गोपियाँ और गोपाल बंधू ,
उनका आपसमें रंगसंग दांडिया नृत्य,
इस होली त्योहार की परिभाषा है।



छाया चित्र -  श्री कृष्णा के चैत्यन्य स्वरुप को आझमाकर, पग घुंगरू बांध साध्वी मीरा अंग संग दांडिया नृत्य नाची रे।  


जो दृश्य नैनों से दिखता है, वो केवल रंग रूप होता है।  जो नजरिया से दिखता नहीं वो स्वरुप अथवा आत्मस्वरूप।   


जब साधना करने वाला साधक, नर या मादी,
मनके कचरे-कुडे को जलाकर और भस्मसाथ कर,
आत्मज्ञान और आत्मबोध को प्राप्त होता है,
ऊस अन्तर्यामी उड़ान, आझादी  और मनः स्थिती का नाम है होली।  




झनक, झनक पायल बाजे इसी गहरी सोच की परिभाषा है।  

Jhanak Jhanak Payal Baje - YouTube

https://www.youtube.com/watch?v=3kIey2rq0kc

Post Note or ताजा कलम for those with facilitating knowledge of English, Hindi and Marathi :


Misinterpretation or distortion of Holi festival and most other traditional ideas occurs in polluted and adulterated Minds that go by the Book. The wisdom of holiness from within is not a Book, nor does it require any proof at any time simply because it is always a blissful inner experience at individual specific level. चिदानंद स्वरूपः।  


अफसोस है की, सामाजिक रूप में अज्ञान भरे दिल और दिमाख के अंधेरेमें में , होली त्यौहार के दिन गंधी से गंधी गलियां बकनेका रिवाज बन गया है।  


The Holi festival has unfortunately been interpreted as a day of Hooliganism in some minds, which is expressed by destructing neighboring as well as public assets including burning of wooden gates, furniture, public transport buses and publicly uttering dirtiest possible curse words to the embarrassment of unintentional listeners.  My childhood years in Nagpur ( 1940 to 1950 ) bear witness to this polluted version of Holi, while my tongue was relishing the sweetness of पुर्णाची पोळी !


खुद की अज्ञानता को होली के अग्निकांड में जलाकर भस्म करना अथवा आहुती देना ये एक गहरी तपस्या है।  वही होली की आध्यत्मिक परिभाषा है।  आध्यात्म याने खुदके पैरों पर खडा किया और सम्हाला हुआ अनुभविक ज्ञान।  


एका अर्थी होळी म्हणजे,  स्वतः च्या शरीराची आणि मनाची आहुती देणे।
मी शरीर नाही आणि मन देखील नाही ह्याची अबुभूती होणें।
मी आत्मस्वरूप प्राण अथवा ऊर्जा शक्ती आहे ह्याची अनुभूती होणे, हीच होळी।  


The above wisdom of holiness condenses as a Dewdrop from the timeless ages, sages and seers of our conscious awareness.  A Dewdrop does not demand any proof because it is the ultimate proof or the undefinable and unchangeable Truth.  

No comments:

Post a Comment

Flying Elephant and Dancing Donkey

Flying Elephant and Dancing Donkey When you see them both performing their arts  in the same arena, it is time to shut up and watch....