Tuesday, March 28, 2017

अलग-अलग परिभाषाओंका अंग-संग, और संग-रंग



अन्य परिभाषाओंके भावनाओंका रंग-संग,  
इबादत (पूजा-प्रार्थना) का एकही रंग, और एकही नशा।    
इबादत ना होती है मुस्लिम, हिंदू, इसाई,
ना जैनी, बुद्ध, सिख, यहूदी, बहाई या और कोई।  
शांति स्वरुप मौन स्थिती में, इबादत का एकही रंग, एकही भाषा और नशा।  

हरे भरे व्रुक्ष के नीचे, तशरीफ रक्खे सूफी उमर खय्याम,
सुन्दर नारी के हाथों भरा साकी ( शराब ) का प्याला,
पर दिलमें सिर्फ आलाह का नशा।   
मन का बैराग, और दिल कि फकीरी,  
छिपा नही जाय, इष्क का प्याला।   

सूफी के अंग-संग, स्त्री-अदब और साकी(शराबी)-नशा।    
सूफी का नशा और संगत, केवल नारी नही होती।  
सूफी की फकीरी उसकी असली साकी और सहेली।   
इबादत, सूफी फकीर का मूलाधार नशा।   
बिना ढोलकके नाचे, फूले और फले,
फकीर की इबादत (प्रार्थना )।   

पग घुंगरू बांध नाचे, मोहन भगवन्त नशेमे साधवी मीरा बाई।   

अन्य परिभाषाओंके भावनाओंका अंग-संग और रंग-संग।   

मेरे अंग-संग, क्लिक-लिंक, वाहे  गुरू।   








गुरू, आतंरिक दिशा और वैश्विक नशेका दिग्दर्शन देते  हैं।   
सद्गुरु, दिशाओंको आझमनेकी अथवा अनुभूति की हैसियत अदा करते हैं, क्योंकि वे खुद खुदा को खुद के दिलमें आझमा पाए हैं।  
सद्गुरुकी दुआएं, माँ जैसी, जीवन रहस्य की कूंजी और पूंजी।  
माँ के पैरों तलेही भिश्त ( स्वर्ग ) है।  
माँ की सेवा में ही, हज्ज होता है ।  

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