सारे जहां से अच्छा मैं, मेराहि मेरा ~~~
दिल और देश, दोनों पागल खाने बन गए हैं।
बायबल, कुराण और पुराण की पुरातन कहानियां सुनसुनकर,
भन्ना गया है, हमारा तन और मन।
पॉलिटीशियन की उम्मीदें, उनके आश्वासनोंकी बरसात और लोगोंके सपने,
शहरोंमें सीमेंटके जंगल, गाओंमें सिर्फ उम्मेदोंकी फसल,
और देशकी असली हालत देखकर,
फटता जाता है हमारा दिल।
कसूर, हम सबका एक बराबर होता है।
याद रहे, मेरे यारों,
जैसी हमारी अंदरकी बंदरी दुनिया,
बंदर का नाच चलता है, चलने दो।
वैसेही, हमारी बाहरी दुनिया बन गई है।
अगर बाहरी दुनिया बदलनी होगी,
तो सबसे पहले हमारे अंदरकी सोच बदलनी होगी।
उसकी पूरी जिम्मेदारी, खुदकी होती है।
जितनी जल्द, अंदरीसोचकी दुनिया बदलती है,
उतनीही जल्द बाहरी दुनियाका परिवर्तन होता है।
ये आकाशसे गरजती बादलों की घोषणा नहीं,
हमारे रब्बरब्बमें भरी अहसास है।
हम खुद उसके दृष्टा हैं। सबूत हैं।
ऊपर या नीचे, पूरब या पश्चिम, उत्तर या दक्षिण,
अन्य दिशाओंमें दौड़ लगाकर,
हम कभी खुदकी असलियत को हासिल ना कर पाएंगे।
तीर्थयात्रा एक स्थलीय यात्रा के भीतर है।
Pilgrimage is a stepless journey within.
ॐ शांति।
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