Thursday, February 23, 2017

महा शिवरात्री मनन - मनोगत


महा शिवरात्री मनन - मनोगत 



Sculpture of Lord Shiva, Kathmandu, Nepal  श्री शिव ध्यानस्थ स्थिती में


इस वर्ष, महा शिवरात्री मुहूर्त २४ फेब्रुअरी, २०१७ को मनाया जायेगा।  


शिव पूजा और भक्ती भाव, एक ध्यानस्थ स्थिती की परिभाषा है।  


गुरु, सद्गुरू और शिष्य ( सप्तऋषी ) एक अखंड ज्ञान परंपरा का रिश्ता है, जिसकी मूल पहचान है शिव अथवा भारतीय संस्कृति ( Not India ). हिंदुस्तान उसकी भौगोलिक पहचान है। इंडिया उसकी नकली पहचान है।  भारतीय संस्कृती एक माध्यम है जिसके द्वारे  वैश्विक इंसानियत की पहचान होती है; ये कोई वर्ण, जाती या धर्म संप्रदाय ( जैन, हिन्दू, बुद्ध, यहूदी,  ईसाई, इस्लाम )  की चिकित्सा नहीं।  


पुस्तकी ज्ञान के पठन और कथन के पश्चात, आत्मज्ञान और आत्मबोध का स्थूल रूप नही होता, बल्की केवल स्वरूप होता है; उसका अस्तित्व नजरियासे से दिखता नही, और जिसकी केवल अनुभूती होती है।  आत्मज्ञान और आत्मबोध कोई किताब नहीं होती। वो खुदके पैरों पर और अनुभवोंपर खड़ी और सम्हली अवर्णनीय आत्मभूती होती है।


अखंड भारतवर्ष के खाटमांडु, नेपाल में एक पुरातन शिव मंदिर है, जहाँ उपर दिखाई ध्यानस्त स्थितीमें शिव मूर्ती है. मूर्ती कि पाठपूजा होती है, परंतु अंतर्यामी शिव ज्ञान और तत्त्वस्वरुप की केवल अनुभूति होती है .


Mahashivaratri 2017, Shivratri Festival Date Time and Maha Shivratri ...



Religion as traditionally practiced seems to be a top notched and buttoned out expression of self experiences garnished with self ignorance and ego, all bundled into one singular caked identity.


बाबा, मन कि आँखें खोल बाबा ~~~  यही श्री शिवजी के भक्तों के अनासक्त भाव की तीसरी आँख होती है।  


शिव तत्व स्वरुप :


एक दृष्टिकोणसे शिव शब्द का मूल अर्थ है “ शि और व “ जिसका भौतिक अस्तित्व नहीं है वो. सत्य, परमसत्य अथवा पूर्णसत्य केवल एकमेव स्वरुप है, जिसकी कोई भी व्याख्या नहीं हो सकती। वो निरन्तर और निराकार है, जो हरेक साधक के लिए एकही अवर्णनीय अनुभूति होती है।   


सृष्टीमे केवल अर्धसत्य की शब्दों से व्याख्या होती है, किताब होती है।  


शिवके अर्धनारीनटेश्वर की प्रतिमा अथवा पुरषोत्तम ये पूर्णसत्य और संतुलन की परिभाषा है।  

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ॐ नमो नमः शिवाय।  

नीचे दिते श्री शिवजी के छायाचित्रमें, शिवके भ्रूमध्यमें अन्तर्यामी तीसरी आंख अथवा अनासक्त नजरिया की पहचान दिलाई जाती है।



मनो बुध्यहङ्कारचित्तानि नाहं नचश्रोत्र जिव्हे नचघ्राणनेत्रे
नचव्योम बुद्धिर्नतेजो  न वायु: चिदानन्द रूपः शिवोहम् शिवोहम् 
(First verse of Nirvana shatakam) ......this is a quote suggested by Mr. Raghavendra Garde, Pune, India that concludes this composition. 

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