बंदर और बंदरी को नचाने वाला मदारी, भारत में मशहूर है।
हम इंसान को को बंदर और बंदरी जैसे नचाने वाला मन, हमामारा मदारी है।
सदा हमारे दोनों खंदोंपर सवार है।
मदारी, बन्दर को पूछता है, इस बंदरी से शादी करेगा ?
बन्दर हथेलियों में भरे चने खाता जाता है, कोई जवाब नहीं देता।
फिर मदारी बंदरी से पूछता है, इस बन्दर से शादी करेगी ?
ये सवाल सुनते ही.
बंदरी बाजूमें पड़े झाड़ू को उठाकर बन्दर को मारने दौड़ती है।
ये है जीवन, बन्दर और बंदरी का नाच; खेल खिलैय्या ,और भूल भुलैय्या।
हमारा मन और उसीसे जुड़ा दिल अगर निर्मल साफ सुत्रा हो,
तो दिल एक मंदिर बन जाता है;
जिसमें हमारा माना हुवा भगवान अथवा दैवी शक्ति,, सदा मौजूद है।
हमारी अंतरयामी प्रसन्नता और स्वयंसिद्धता उसका सबूत बन जाता है।
स्वयंसिद्ध होना याने तन और मनको स्थिर करके जीवन के एकमेव अनुभूति को प्राप्त होना।
खुदकी रियासत में, खुदको पाना।
यही महसूस होती है, हमारे स्खंड ऋषि-मुनी परम्परासे बहती ज्ञान गंगा अथवा आत्मस्वरुप की गीता और गाथा।
आत्म स्वरुप, जो नजरियासे दिखता नहीं, परन्तु जागृतावस्था में, हरपल महसूस होता है।
ॐ शान्ति, शान्तिह।
ॐ एक सुसंस्कृत ध्वनी तरंग है, कोई धार्मिक सम्प्रदाय नहीं।
ॐ ध्वनी तरंग हमारे दुन्नी, व्रह्दय , और कंठ से निकलकर हमें हमारी वैश्विक पहचान की हरकत दिलाती है।
ॐ
आप सबके लिये नया वर्ष, २०१८, मुबारक हो। शुक्र हो।