१२ जनवरी, २०१४
ना, ना, ना
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ना, ना, ना की पाबंदियोंमें खुदको खो ना बैठो, इंसान बनो
ना बनो हिन्दू, ना सिख, ना जैनी, ना रहो बुद्धू,
ना बनो यहूदी, ना मुसलमान, ना ईसाई, ना कसाई।
कसाई वो होते हैं, जी दूसरों को काटते हैं,
और काटते काटते, खुद को भी कटवा लेते हैं.
मैं, ना हूं किसीका गुलाम, सबको मेरा सलाम,
सही सलामत रहे हरेक इंसान, अपनी अपनी सोच में .
हमारा मालिक एकही है, उसका ना कोई नाम, ना निशाना।
ॐ, एकोनकार, निर्वाण, अल अलीफ अल्फाज़ महेसूस होते हैं एकही धुन के,
मैं सिर्फ उसे हूँ, हूँ, हूँ की तरंगों में, महेसूस और आझमाता रहेता हूँ।
ना खड़े रहो सिर्फ़ नदीके किनारे, ताकते ही रहोगे,
पानीमें तैरे बिना, नदी को पार ना कर पाओगे,
केवट की राह ताकते रहोगे, तो जिंदगी फिसल जायेगी,
नदीमे में डुबकी मारे बिना, पानी की गहेराई आझमा ना सकोगे।
ना सिर्फ खड़े रहो, समुन्दर के किनारे,
सूर्यकी हल्कीसी किरणें, चाँद सितारों से महेकती फुलवारी,
समुन्दर की लहेरें जैसी क्षितिजसे निकली, बार बार गले लगती किनारेसे,
और हलकी बहेती हुई हवाओंकी खुशबू बिना लिए,
क्षितिज और आसमानकी दूरी, आझमा ना सकोगे।
खुदा, ईश्वर, और ईश्वर अवतारको ना ढूंढो अंधश्रद्धा से,
ना रखो स्वर्ग की लालच , ना नर्क या भिष्ट का डर,
ना रहेगा बांस, ना बजेगी बंसरी।
आझमालो जिन्दगीको सिर्फ हूँ, हूँ, हूँ की प्यारी धुन में,
किसी पाबंदियोंके गुलाम ना बनो, सिर्फ इंसान बनो.
माँ का गर्भ है हमारा विश्वगर्भ, पिता हमारे साक्षी,
स्त्री और पुरुष एक समान, इंसानियतके नाते है दोनों पक्षी,
इंसानियत ही हमारा परम धर्म महेसूस होता है,
खुद, खुदा और हैवान के लिए, सिर्फ बनो इंसान.
ना, ना, ना की भीड़ और पाबंदियोंमें डूब ना जाओ,
और खुदको ना खो बैठो,
सिर्फ इंसान बनकर खुदको पालो।
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