संकेतिक छाया चित्र - भेडीयां और चरवाहा
पूरा विश्वास/भरोसा रखकर, भेड़ियाँ चरवाहा के पीछ अंगसंग रोजाना
बिना किसी चिंताओं से, हरियाली में चरने जाती हैं।
पूर्ण विश्वास/भरोसा एक गहरी शक्ति स्वरुप होती है, और अंधविश्वास मूढ़ता भी हो सकती है।
शक्ति स्वरुप और मूढ़ता, इन दोनों के दौरान इंसान के जिंदगी की दौर चलती रहती है।
इंसान की मूढ़ता सदा सवाल करती रहती है, मैं कौन हूँ ?
चरवाहा कौन और भेड़ियाँ कौन ये बड़ा सवाल खड़ा रहता है, खुदकी पहचान आझमाने में।
मानवता के सारे धर्मग्रन्थ संकेतिक भाषा में ही लिखित हैं।
लिखित संकेतों को बिना समझे और आझमाए, कोई इंसान आतंकवादी भी बन जाता है,
जो आजके २१ सदी दुनियामे भी जाहिर है।
आतंकवादी वो होता है,
जो अंधविश्वास में डूबकर, अनजाने दूसरों को और साथही साथ खुदको भी बरबाद करता है।
जमीन और आसमाँ पुकारे, यारों आज नहीं तो कब जागोगे ?
राम या रहीम, ईश्वर या अल्लाह, ईसा या मूसा, बुद्ध या महावीर ऐसी जुगलबंदी एकही सनातन सोच है,
सनातन का मतलब है, जिसकी कभी शुरुवात नहीं और अंत भी नहीं।
जो सदा मनोभावमें भ्रमण करती रहती है।
एक दृष्टिकोण से, मनोभाव हमारे चित्त का मानस सरोवर है।
हिमालय की गोदमें बसा और पला मानस सरोवर,
अखंड ऋषी परम्परा के आत्मज्ञान और आत्मबोध का संचित अमूल्य सरोवर है।
इन्सान ने लिख्खे सारे धर्म ग्रन्थ, अद्वैत अथवा एकांकार सोच की संकेतिक परिभाषा है।
वैश्विक ऊर्जाशक्ति स्वरुप दो (२) या अनेक नहीं, सिर्फ एकही अवर्णनीय अनुभूति है।
वैश्विक अथवा दैवी शक्ति का कोई बेटा, बेटी, या ठेकेदार नही बन सकता।
हमारे श्वासोश्वास की गति जो वैश्विक रफ्तार से चलती है,
वही हम सारे जीवों की और हरियाली की वैश्विक पहचान है।
हरियाली, प्राण वायु ( ऑक्सीजन गॅस ) छोड़ती है, जिसे हरेक जीव श्वास द्वारा सेवन करता है,
और हरेक जीव अप्राण वायू ( कार्बन डाई ऑक्साइड गॅस छोड़ता है, जिसे हरियाली शोषण करती है।
यही लेंन और देंन का ेअद्भुत रिश्ता, जीवन कहलाता है।
यही प्राण और अप्राण वायू की लेनदेन में हमारी पूरी वैश्विक पहचान समाई महसूस होती है।
ॐ ध्वनि तरंग की महिमा :
त्रिगुणात्मक ॐ ध्वनी तरंग, सारे अस्तित्व की परिभाषा है।
ॐ के ध्वनीतरंग में, तीन (३) नादों का एकीकरण है;
आत्मस्वरुप का “आ” नाद, ऊर्जा शक्ति का “ऊ” नाद, और कंठ भ्र्मरि “ हं “नाद।
एकाग्रता से सुनिए, नैसर्गिक शंख के अंदर फूकनेसे, बाहर लिकलने वाला ध्वनी नाद तरंग ॐ महसूस होता है।
अखंड भारतीय संस्कृतिक और बौद्धिक परम्परा में समाया ॐ,
श्री कृष्ण के शंख नाद मे महसूस होता है।
ॐ शंख नाद, कुरुक्षेत्र जीवन संग्राम का आव्वाहन और जीवन की अनुभूति दिलाता है।
यही संकेतिक भाषा का रूप और स्वरुप होता है।
ईश्वर, अल्लाह, खुदाह या गॉड धर्मग्रन्थ और मंदिर, मस्जिद, दर्गा या घंटाघर के कैदी नही,
क्योंकि वह शरीर रूप ही नही है; केवल अंतर्यामी आझमने की अनुभूती है।
जो नजरिया से दिखता है वो रूप होता है, और जो नजोरिया से दिखता नही वो स्वरूप होता है।
खयाल अथवा सोच, हमारा खुद का ही स्वरूप होता है।
इंसान जब खुदसे ही परेशान रहता है, तभी बेईमान और हैवान महसूस होता है।
जब वही इंसान करुणाशील खुशमिजाज होता है, तब चिदानंद रूप महसूस होता है।
श्रीखुद, खुदाह, अल्लाह, गॉड,या साईँ, दिलकी एकही ललकार या पुकार होती है।
जो सिर्फ शान्ति स्वरुप की परिभाषा है;
खुदके मन या दिल की गुफामें आझमाँनेकी अरमां है।
भिश्त ( स्वर्ग ) और जहन्नम ( नर्क ) में सिर्फ एक सूत या सोच का फर्क होता है,
जैसे एकही पहाड़ की ऊंचाई और उसी पहाड़ की खाई।
जब नजरिया निर्मल होती है, ऊंचाई और खाई दोनों एक साथ नहसूस होती है।
हरेक जीव,
इन्सान से लेकर पशू , पक्षी, जानवर , चींटी, कीड़ा, या मकोडा ये सब एकही अंदाज में ,
एकही मालिक शक्ति के के बच्चे हैं।
जैसी हमारी नजरिया, वैसे ही हमारी सोच होती है।
कोई भी जीव ऊंचा और ना नीचा, सब को जीने की तमन्नाएं एक बराबर।
यही जीवन या जिंदगी का एकमेव उसूल महसूस होता है।
इसी उसूल में ॐ श्री, अल्लाह, या गॉड पूर्णतः एकमेव अस्तित्व का स्वरुप हैं।
जिसका हमेशा जागृतावस्था में अहसास होता रहता है।
जिंदगी केवल एक पलभर की अनुभूति है,
जिसमें ना पहाड़ की खाई और ना ऊंचाई।
सिर्फ खुदके असलियत और अस्तित्व की अन्तर्यामी पहचान है।
अनुघूती कोईभी धर्म सम्प्रदाय परम्परा की किताब नहीं; केवल हमारी जागृतावस्था है।
जैसे प्रातः समय कोयलिया की कुहू ~ कुहू ~ मंजुल पुकार, और रात्रि में जुगनू की तारों जैसी चमकान।
छाया चित्र - सनातन जगतगुरू श्री योड़ा योगी महाराज ( स्टार वॉर्स )
जगतगुरू संकेतिक आदेश देते हैं:
हमारा बदन ही हमारा वतन है जिसमें हम जन्मते, जीते, और परिवर्तनशील बनते हैं।
खुदके ही खातिर, इसी बदन में हम हंस के जीएं और जिंदगी को हंसाएं,
ॐ अस्तित्व स्वरुप की प्रफुल्लता को प्राप्त होने।
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