रिश्ते
रिश्ते हमारी असली अमानत या पहचान होती है।
सिर्फ जनम जनम के रिश्ते लेकर हम इस दुनियामेंआए हैं,
और रिश्ते समेटकर ही वापस लौटेंगे।
हमारे कर्म और धर्म संयोग के रिश्ते, हमारी जनम जनम की पहचान।
धर्म हमारी अहंकारी सोच नहीं, और ना मजबूरी या बंधन।
धर्म हमारे स्वतंत्रताकी रियासत, जिस में हम और तुम एक हो जाएँ।
हम और तुम एक दूसरे को चिपक के नहीं,
बल्कि, एक दूसरे में सहजता से घुल जाएँ, जैसे पानी और चीनी ;
जिसमें ना रहेगा इंसानका अहंकार, और ना ईश्वर या अल्लाह।
सिर्फ रहे जाएगी, एकही चेतना की खुशबू,
जिसे इंसान आझमाए, चैतन्यमहाप्रभु या चिदानंद रूपः।
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