आशिर्वाद
आशीर्वाद कोई Lectureबाजी या दुनियादारी नहीं, बल्कि केवल दिल अथवा ब्हृदय की मौन पुकार होती है।
माँ, अपनी संतान को आर्शीवाद देती है “ ॐ आयुष्यमान योगी भवः।
पिता, उसी संतानको आशीर्वाद देता है “ ॐ आयुष्यमान भोगी भवः।
एक दृष्टिकोण से, जीवन के सर्वे शक्तियों से एक जीव हो जाना याने योगी बन जाना।
एक दृष्टिकोण से, जीवन के सर्वे शक्तियों से एक जीव हो जाना याने योगी बन जाना।
माँ संतान को कहती है, तूने भोजन खाया नहीं तो कमायेगा कैसे।
पिताश्री उसी संतान को कहता है, तूने कुछ कमाया नहीं तो खायेगा क्या, पेट कैसा भरोगे ?
करुणा और वातसल्य सम्पन्न माँ, संतान की अन्तर्यामी सफर के लिए जागृती दिलाती है।
पुरुषत्व रूप पिता, संतान को बाहरी दुनिया के मार्गोंकी पहचान दिलाता है।
माँ और पिताश्री, एकही सर्वभूमिक शक्ति के दो रूप हैं, जैसे अर्धनारी नटेश्वर।
एक् के बिन दूजा नही और दो के बिना एक नहीं, ये क्या जंतर मंतर है, भूल भुलैया है ।
छाया चित्र - अर्धनारी नटेश्वर - सम्पूर्णानन्द स्वरूपः
ये सारी क्या बकवास है, हमें पता नहीं भगवान!
भगवान प्रणाम तुम्हें करते, हम छोटे छोटे बालक हैं।
तुमही हो माता, तुम ही हो पिता हमारे,
तुम ही हो बंधु, और तुम ही हो सखा हमारे,
तुम ही हो चैतन्य और कृपा स्वरूपी।
तुम आँखों से दिखते नहीं, परन्तु अहसास सदा होता रहता है तुम्हारा।
हमें ना पता स्वर्ग का, और ना पाताल का ,
सिर्फ जहां खड़े हैं, यही हमारा पता, हमारी पहचान।
दया करो भगवान, हम अन्नाडी बच्चों की।
आपके सदा सर्वदा कृपाभिलाषी,
भगवान प्रणाम तुम्हे करते, हम छोटे छोटे अन्नाडी बालक हैं।
No comments:
Post a Comment