२७ फेब्रुअरी, २०१८
अहंकार - रूप और स्वरुप
छाया चित्र - बिल्ली या बिलौवाका अहंकार
छाया चित्र उपस्थिति - दीपक सुरेश दव
रूप आँखोंसे दिखता है, और स्वरूप जो आँखोंसे नही दिखता, बल्कि सिर्फ महसूस होता है।
भगवान की मूर्ती नजरियामें भरती है, परन्तु उसका सत्चिदानंद स्वरुप केवल महसूस ही होता है, और जिसकी असली पहचान केवल अनुभूति से ही होती है। अनुभूति याने अन्तर्यामी सनातन प्रसन्नताकी पहचान। ये सोच महसूस होती है सतसंग प्रसाद अथवा सद्विचारोंकी संगतमें प्राप्त हुवा प्रसाद।
आज इसी सोचमाला में अर्पण है अहंकार की महिमा :
अहंकार - खुदके अज्ञानता का स्वाभाविक प्रदर्शन।
अहंकारी इंसान - मंदिर / मस्जिद / गुरुद्वारा / चर्च बनाता है जिसमें खुदके इष्ट भगवान को कैदी बनाकर, खुदकी मांगें और मन्नतोंको पूरी करवाना चाहता है। इष्ट भगवान की मूर्तियां बनाकर, उस मूर्ती में प्राणप्रतिष्ठा और वहृदय की गीली बूँदें डालना भूल जाता है। अन्यतः खुदका नाम ईंटों और चट्टानोंपर लिखवाना नहीं भूलता ” श्रीमान अंटसंट की कृपा से ५० लाख रुपयों की हार्दिक दान सेवा से बना है ये पूजा घर ~~ “ .
रिश्वत देना और लेना अहंकारी खूनमें सदा बहता रहता है। भगवान से भी लेना, देना और उचारी चलाती रहती है।
अहंकारी दिल सदा रोता है जिसके आंसूं कहते है “ और, और, और की चाहत के कंठ नाद में “।
निर्मल मन सदा मंगल भावनासे सारे जीवों के और अनंत सृष्टी के भलाई में सिर्फ एकही प्रार्थना अर्पित करता है, सुनिए
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