०६ जनुअरी, २०१८
संकेत और संकेतिक भाषा
----------------------------
संकेत एक इशारा होता है जो कभी नजरियासे, कभी हथेलियोंसे, कभी लिखित धर्म ग्रन्थ से।
धर्म याने हमारी दैनंदिन अथवा रोजाना चाल, चलन, और सोचका भाव। हरेक शब्द या लब्झ को मूलार्थ से समझना हमारी खुदकी जिम्मेदारी होती है, ख़ुदकेही भलाई के लिए।
आतंकवाद कोई धर्म ग्रंथ नहीं, केवल खुदकी अज्ञानताका प्रदर्शन होता है। आतंकवाद भाव, इन्सानका अन्तर्यामी अग्नि कांड है जिसमें आतंकवादी दूसरोंको भस्म क़रनेके प्रयासमें, खुदको ही भस्मसाथ करता है। आतंकवाद खुदके जहन्नम की परिभाषा है।
हमारा जहन्नम (नर्क ) और भिश्त ( स्वर्ग ) सदा हमारे अंदर ही मौजूद है। उन्हें बनाने वाला कोई खुदाह, गॉड, अथवा ईश्वर नहीं, बल्कि हमारा बन्दर/बंदरी मन और मनो भाव।
इंसान ने धर्मग्रन्थ की रचना किई है, खुदकी और खुदाह अथवा ईश्वरी शक्ति की अद्वैत पहचान को पर्याप्त होने के लिए। उदाहरणार्थ :
श्री भगवद्गीता, श्री भागवत पुराण, श्री क़ुराण, श्री येसू बाइबल और ऐसेही अन्य धर्मग्रंथ संकेतिक भाषा में प्रस्तुत किये ग्रंथ हैं जो अँध विश्वास के गंथ नहीं; बल्कि खुद और खुदाहकी असलियत को प्राप्त होने की गुरु कुंजी और पूंजी है।
कोई भी इंसान किसी धर्म ग्रंथका मालिक या ठेकेदार नहीं होता, और ना बन सकता है।
इबादत अथवा प्रार्थना के इश्कका भाव कोई हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई, बहाई या यहूदी नहीं होता। इबादत/प्रार्थना की रियासत; सिर्फ खुदकी अन्तर्यामी वैश्विक पहचान जिसमें ना कोई दूजा, ना कोई ऊंचा, या ना कोईनीचा।
मोगरेके फ़ूलकी खुशबू, फूलसे अलग नहीं हो सकती, वैसेही इन्सानकी इंसानियत अलग नहीं होती, परन्तु इन्सानका बंदरी मन, अहंकार और अज्ञान उसे छिपाने की हरकतें करता रहता है।
ईश्वर, अल्लाह, गॉड इत्यादि शवद प्रयोग एकही दैवी वैश्विक खुशबू अथवा आत्मज्ञान की परिभाषा है।
आत्म ज्ञान के पश्चात, आत्मबोध हरेक इंसान की एकही अवर्णनीय अनुभूति होती है। ये मानवी अखंड ज्ञान परम्परा का संकेतिक आदेश है।
No comments:
Post a Comment