हरियालिके बीचमें सफेद मोगरेका फूल महेकता है। मोगरेका शुभ्र सफेद रंग और उसकी खुशबू संकेतिक है।
सफ़ेद रंग, मनके निर्मल और सात्विकताका अहसास दिलाता है।
मोगरेका फूल जो नजरियासे दीखता है, वो है रूप. मोगरेकी खुशबू जो नजरियासे दिखती नहीं, वो है स्वरुप। स्वरुप केवल महसूस होता है।
हरेक जीवकी खुदके जिन्दगीको आझमनेकी अपनी अपनी नजरिया होती है, जो चंचल शरीर, मन और बुद्धिके मुताबिक बदलती रहती है।
हिन्दू शास्त्रनुसार २१- २९ सितम्बर २०१७ नवरात्री का उत्सव मनाया जाएगा। दसवा दिन दशेरा मनाया जाएगा, जिसमें हमारी अन्तर्यामी दुर्गा शक्तिकी हमारेही राक्षसी/अहंकारी प्रवृतियोंपर संकेतिक जीत मनाई जाएगी।
नवरात्रिके संकेतिक उत्सवमें गर्भा नृत्य, दुर्गा अथवा वैश्विक शक्तिका आवाहन/पूजन, और अनेक सार्वजनिक कार्यक्रम मनाए जाते हैं।
छाया चित्र - नवरात्रिका गर्भा नृत्य
नजरिया एक संकेतिक भाषा अदा करती है। श्री रमणमहर्षि मौनव्रतमें होते हुवे भी, उनकी नम्र और निर्मल आंखोमें गहरा संकेत था ( @ तिरुवन्नमलाई आश्रम १९४२ ) जो हरपल आजतक सत्चिदानंद स्वरुपकी आस दिलाता है।
इस विषय के माहॉलमें एक आत्मस्वरूपी संकेतिक भजन याद आता है “ अंग संग, वाहे गुरू ~~ "
बालबोध ग्रंथ जैसे इसाप नीति ( Aesop's Fables ), गाय चरवैय्या और माखन चोर नटखटिया श्री कृष्ण की बालक्रीड़ाएँ इत्यादि संकेतिक भाषामें बच्चोंका दिल बहलाती हैं।
दुनियाके सारे धर्मग्रन्थ संकेतिक अथवा सूचनात्मक परिभाषा में लिख्खे गये हैं। इन ग्रन्थोंके कुछ उदहारण हैं :
हिंदू धर्म - महाभारत ( गीता ) , रामायण, श्री कृष्ण/ब्रह्म/विष्णु/महेश पुराण, श्रीमद्भागवत, इत्यादि।
जैन धर्म - ADAMS .
बुद्ध धर्म - तिपितक। ( Tipitaka ) .
सीखः धर्म - गुरु ग्रंथ साहेब।
हीबरू / क्रिस्चियन - बायबल।
इस्लाम - कुराण।
कोईभी धर्मग्रंथ उसके संकेतिक भाषाको बिना समझे और आझमाये ग्रहण किया जाए तो उसका नतीजा होता है आजकी अन्नाडी दुनिया; जो हम सब दुनियावालोंकी नजरियामें पेश है, या गवाह है ।
स्वयंसिद्ध ध्यानस्थ स्तिती द्वारे ( मौन चिंतन / साधना / Meditation ) वैश्विक ज्ञान ( universal wisdom ) आझमाँना और उसकी अनुभूतीको प्राप्त होना इसीका मूल रहस्य महसूस होता है स्वर्ग, या निर्वाण, या मुक्ति (eternal life consciousness), या हेवन ( Heaven ), या भिश्त।
एक सत्य जाहिर है की ईश्वर, अल्लाह, या गॉड धर्मग्रंथ नहीं लिखते, और ना आकाशवाणीसे किसी जीव को आदेश देते हैं। नैसर्गिक उसूलसे इन्सानको दिमाग मिलता है, परन्तु दिमागको इश्तेमाल करनेकी पूरी जिम्मेदारी, सिर्फ इंसानकीही होती है। जैसा काम, वैसाही दाम मिलता है; कुछ कम नहीं और ज्यादा भी नहीं ।
ईश्वर, गॉड और अल्लाह ये तीन अलग अलग पूजनेके लिए रूप नहीं, बल्कि केवल एकलव्य आत्मबोध अनुभूति है।
परमात्मा = परम आत्म संयोग।
आत्मबोध = खुदके अन्तर्यामी अनुभवोंपर खड़ा और सम्हला हुवा आत्मज्ञान।
एकनिष्ठ साधनामें स्वर्ग/भिश्त/Heaven की आसक्ति या प्रेरणा नहीं, अहंकारात्मक भाव नहीं, कालमर्यादा नहीं ; सिर्फ एकमेव दृष्टा बनकर सत्चिदानंदा स्वरूप की अनुभूति को होना। इसीमें जीवनका सार महसूस होता है।
सार्वभौमिक ज्ञान ( universl wisdom ) की सुगंध को महकने के लिए हमारे जीवन के अन्तर्यामी अनुभव धीरे-धीरे कालातीत समय की अवधि में फूलते और फलते हैं। उस माहॉलमें हमारे वास्तविक जीवन का आनंद लेनाका पता चलता है।
आत्मबोध छात्रवृत्ति की पुस्तक नहीं है।